सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भोपाल गैस त्रासदी - जानिए पूरी कहानी - भाग 1

 



JP Nagar - 2nd December 1984

30 वर्ष से भी ज्यादा का समय बीत चुका है भोपाल की वह दर्दनाक और  भयावह रात बीते हुए आज भी कहीं उसका जिक्र होता है तो रूह कांप उठती है अगर आपको 2 दिसंबर की रात है भोपाल में क्या हुआ था इसकी जानकारी नहीं है तो बताते आपको कि 2 दिसंबर 1984 की उस कलंकित रात हजारों मासूमों को अपने चपेट में ले लिया था!

यूनियन कार्बाईड नाम का कारखाना जो भोपाल में स्थित है इससे एक जहरीली गैस के रिसाव के कारण पूरे शहर में मौत का तांडव मच गया था आज भी कई बड़े-बड़े नेता और लोग भोपाल की उस भयावह रात के बारे में कई अनेक टिप्पणियां देते नजर आते हैं क्या सच है क्या झूठ है कोई यह नहीं बता सकता शिवाय उस व्यक्ति के जिसने उस तक रात को अपनी आंखों से देखा हो और सिर्फ देखना ही काफी नहीं जिसने उस त्रासदी को जिया हो और बेहद और करीब से देखा हो


भोपाल का जयप्रकाश नगर जिसे जेपी नगर कहा जाता है यही वह इलाका है जिसे 1984 की 2 और 3 दिसंबर की उस भयावह रात का गवाह बना था उसे याद करते हुए आज भी यहां रहने वाले की  रूह कांप उठती है इसी दिन जेपी नगर के सामने बने यूनियन कार्बाइड के कारखाने में एक टैंक से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (CH₃NCO) का रिसाव हुआ था इस घटना का वजह से भोपाल का नाम विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी से जुड़ गया और उस रात मची भगदड़ में हजारों लोग ही नहीं बल्कि हजारों मासूम पशु पक्षियों की जाने गई यही नहीं बल्कि पर्यावरण को नुकसान हुआ उसकी भरपाई आज तक हम नहीं कर पाए उस रात को कितनी जाने गई इसका पता लगाना मुश्किल है कितना मौतें हुई इस पर आज भी मतभेद है इस मौत का नजारा सिर्फ उस तारीख तक ही सीमित नहीं था उस घटना कई सालों तक इसका प्रभाव पड़ा!

जितना अभी तक आपको बताया यह हम नहीं जानते  कि कितना आप सब जानते हैं बल्कि सच्चाई तो हमारे सोच से परे है उस रात क्या क्या हुआ था किस की मदद की गई थी या मदद भी की गई थी या नहीं यह सिर्फ वह आदमी ही बता सकता है जो इस घटना को एकदम करीब से देखा हो!

आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते अंधेरी रात में जान बचाकर भागते हुए उन मासूम लोगों को क्या ही पता था उनके साथ क्या होने वाला है वह तो अनजान अपने अपने  झुग्गी झोपड़ियों में रात का खाना वह भी जैसे तैसे कुछ कमा कर खाया था उसके बाद जब वह सोने जाएंगे तो उठेंगे ही नहीं कई छोटे बच्चे जिनका अभी दुनिया देखना बाकी था दुनिया देखने से पहले ही वह जहरीली गैस उनके शरीर में घुसकर इनको हमेशा के लिए गहरी नींद सुला देगी और वे कभी दुनिया देख ही नहीं पाएंगे!

बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं हो जाती है इस घटना के पहले और इस घटना के बाद दोनों समय बहुत ही महत्वपूर्ण है अब तक आप सभी के मन में कई सवालों और आशंकाओं की भरमार लग चुकी होगी… जैसे इस भयानक त्रासदी में कितने लोगों की मृत्यु हुई क्या जितना बताया जाता है उससे अधिक मौतें हुई थी उन लोगों के परिवार का क्या हुआ जिनके घर में कमाने वाला सिर्फ एक ही था  जिसे इस जहरीली गैस ने गहरी नींद में सुला दिया था क्या उसे सरकारी सहायता प्राप्त हुई क्या इस घटना के पीछे किसी की लापरवाही थी क्या सुरक्षा में कमी थी क्या इस त्रासदी को रोका जा सकता था अगर कुछ सावधानियां बरती जाती है उस घटना के बाद  करखाने का क्या हुआ क्या करखाने शहरी आबादी वाले जगह पर चलाना सही है इस ब्लॉग में हम पूरा विस्तार से इस घटना के बारे में आपको बताएंगे बने रहे हमारे साथ!

ज्यादातर लोगों के पास सही जानकारी नहीं होती है क्योंकि सही जानकारी के लिए सही सूत्रों की कमी है आप हमारे साथ बनी रहे और जानिए भोपाल गैस त्रासदी का असली सच क्या था जिनके बारे में आप शायद ही कहीं पढ़ा और सुना होगा!

गैस त्रासदी एक अविस्मरणीय रात, लेखक भोपाल शहर के बारे में बताते है, वे कहते हैं कि भोपाल शहर ताल तलैया और शिखरों का एक मनोरम शहर है इसका बड़ा तलाब काफी प्रसिद्ध है आपकी जानकारी के लिए बता दूं लेखक उस त्रासदी के दौरान वहां के कलेक्टर के पद पर तैनात थे और यही वजह है कि उन्होंने इस घटना को काफी करीब से देखा है और उसका विवरण किया है करबला रोड पर बड़े तालाब के किनारे उनका बंगला ऊंचाई पर स्थित था दो मंजिला काफी पुराना बांग्ला था और बड़ा भी था उस त्रासदी के समय लेखक वहां के कलेक्टर थे बताते हैं कि 2 दिसंबर 1984 की रात को हमेशा की तरह खिड़कियां दरवाजे बंद करके कर्मचारी बाहर जा चुके थे और लेखक भूतल पर अपनी लिखा पढ़ी का काम कर रहे थे, अपना काम निपटाने के बाद जब वह 12:00 बजे करीब पहली मंजिल पर पहुंचे तो उनकी आंखें मैं ऐसा लगा जैसे उनकी आंखों में किरकिरी पड़ रहा हो उन्हें मामूली सी तकलीफ जान पड़ रही थी तो उन्होंने अपनी पलकों को पानी से धोया और आंखें मूंद कर लेट गए तो उन्हें तुरंत आराम मिल गया बाद में पता चला कि गैस रात के 12:00 बजे से पहले ही फैलना शुरू हो चुकी थी लेखक को गैस लीक होने की भनक तब लगी जब 1:30 बजे करीब एक आवाज सुनाई पड़ने के कारण उनकी नींद खुल गई फिर किसी ने आवाज लगाई की शहर में गैस फैल चुकी है आंखें खोलते ही उनकी आंखों में जलन सी होने लगी!

जैसे ही उन्हें इसकी खबर मिली वे तुरंत अपने मुंह पर हाथ रखकर बाहर कार में बैठ गए और निकल पड़े हालातों का जायजा लेने! कार को स्वयं चलाते हुए धीरे धीरे शहर की ओर जा रहे थे तब उन्होंने देखा कि शहर के असंख्य लोग घबराहट और दहशत में इंदौर रोड से सीधे भाग जा रहे थे बाहर भगदड़ की स्थिति बहुत ही भयानक जान पढ़ रही थी लोग कार जीप, बस, स्कूटर, मोटरसाइकिल, साइकिल और जिन्हें कुछ नहीं मिला वो पैदल भाग जा रहे थे!

लेखक चौराहे से दाई ओर मुड़कर शहर की ओर जाना चाह रहे थे वह भी भीड़ और भगदड़ की विपरीत दिशा में लेकिन भगदड़ को देखते हुए यह बेहद ही कठिन राह लग रहा था फिर कैसे भी करके उन्होंने अपनी कार को धीरे-धीरे उस भीड़ में जाते हुए शहर की ओर बढ़ाएं जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे वैसे भीड़ कम होती जा रही थी उस समय का क्या दृश्य था इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था लेकिन लेखक ने जो भी उस रात महसूस किया अपनी आंखों के सामने होते हुए देखा वह सभी के ह्रदय को बेचैन कर देने वाला रात थी!

इमामी गेट से लेकर पीर गेट तक पूरा इलाका सुनसान थी, फैली हुई जहरीली गैस के बादल इमामी गेट से आगे पीर गेट तक स्पष्ट दिखाई दे रही थी शहर से 20-25 फीट आगे देख पाना असंभव था अब वे कार को धीरे धीरे  चलाते जा रहे थे लेकिन यह नहीं बोला जा सकता कि कार के आगे पीछे जहरीली गैस मंडरा रही थी और धीरे-धीरे उनके कार के अंदर घुसने का प्रयास कर रही थी जैसे-जैसे गैस अंदर घुसती जा रही थी वैसे वैसे उनका दम घुटता जा रहा था लेखक उस समय भोपाल के कलेक्टर के पद पर नियुक्त थे लेकिन हालात इतने खराब थे की स्थिति का जायजा लेना मुश्किल होता जा रहा था और जहां देखो वहां लोग इधर-उधर भागे जा रहे थे सभी अपनी जान बचाने के प्रयास में थे अथक प्रयास और निराशा ऐसी स्थिति में लेखक अपना फर्ज पूरा करना ना भूले और उनसे जितना हो सकता था उन्होंने प्रयास करना शुरू कर दिया था लेखक ने वहां के टाउन इंस्पेक्टर श्री शाही को बुलाकर बात की और थाने में लगे वायरलेस के द्वारा शहर के अन्य स्थानों एवं मोबाइल गाड़ियों से संपर्क करने का प्रयास किया उन्होंने मोबाइल नेटवर्क पर कहा कि गैस रिसाव से सहारनपुर मे भगदड़ मच गई है लोग शहर से बाहर भाग रहे हैं शहर सुनसान होता जा रहा है इसीलिए पुलिस द्वारा भीड़ को नियंत्रित किया जाए जिससे घटना हो ना हो उन्होंने यह भी कहा कि वीरान हुए क्षेत्र की व्यवस्था शुरू करनी पड़ेगी लेकिन किसी भी पुलिस मोबाइल से एक भी उत्तर नहीं आया थाने में लगे वायरलेस सेट से थाने के लिए भी उन्होंने बात की और कई बातें दोहराई लेकिन उन्होंने कहीं से भी कोई उत्तर नहीं मिला अथक प्रयासों के बाद बड़ी मुश्किल से टेलीफोन पुलिस कंट्रोल रूम से उनका संपर्क हुआ लेकिन वहां पर सहायक पुलिस निरीक्षक चौहान ने टेलीफोन उठाया लेखक ने यह सभी बातें फिर से दोहराई तो उन्होंने वहां से उत्तर दिया कि साहब यहां है ही कौन जो सब करें थाने के सामने हर तरफ भीड़ ही भीड़ और भदगड़ देखकर मन कांप उठा!


बैरागढ़ थाने के टाउन इंस्पेक्टर साहिल से कहा कि वे उस बस्ती में गश्त लगाएं पास में है नीले रंग की पुलिस बस खड़ी थी साहिल ने उस गाड़ी की ओर इशारा करते हुए लेखक को बताया कि उसने डीजल नहीं है और लेखक चुप हो गए और कुछ नहीं कहा इससे पता चलता है कि हमें इसी उपस्थिति के लिए पहले से ही तैयारी रखनी चाहिए क्योंकि कोई नहीं जानता कि कब कौन सी मुसीबत आ पड़े हां यह सच बात है कि हम यह नहीं जानते कि कैसी स्थिति आने वाली है उसके लिए किन-किन चीजों की जरूरत पड़ेगी लेकिन हम जितना जानते हैं और जितना कर सकते हैं कम से कम इतना तो पहले से करके चले जिससे कि विषम स्थिति में भी ज्यादा से ज्यादा नुकसान ना हो अब लेखक ने फैसला लिया कि वे पुराने शहर में जाएंगे लेकिन लेखक बीच-बीच में कार किसी से कॉल कर गैस के प्रभाव का जायजा ले रहे थे अब इतना स्पष्ट हो चुका था कि इतना समय बीतने के बाद हवा में गैस मिलकर पतली हो गई थी और लेखक किसी तरह से आगे बढ़ते चले जा रहे थे पुलिस कंट्रोल रूम में भी लोग आ-जा रहे थे कुछ राजनीतिक लोग भी वहां देखें गए सभी लोग काफी घबराए हुए थे पुलिस कंट्रोल रूम में उपलब्ध कर्मचारियों और अधिकारियों से चर्चा करने के बाद भी अभी नहीं पता लगा पाया था की यूनियन कार्बाइड की स्थानीय फैक्ट्री से कौन सी गैस रिसी थी इन्होंने फैक्ट्री में फोन से संपर्क किया और प्लांट सुपरवाइजर ने बताया कि जो गैस निकली है उसका नाम मिथाइल आइसोसाइनेट है बाद में जानकारी सभी अस्पतालों में दी गई फैली हुई गैस के प्रभाव से अनभिज्ञ सभी अधिकारी!

दोस्तों यहां यह बात गौर करने वाली है अभी तक सिर्फ यह पता चला कि यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट नाम की गैस रिसी है लेकिन यह नहीं पता चला की गैस अधिक खतरनाक है या नहीं और इसकी जानकारी किसी भी अधिकारी ने नहीं दी थी किसी ने यह नहीं बताया कि यह गैस जानलेवा भी हो सकती है कंट्रोल रूम में किसी ने यह आशंका व्यक्त नहीं की थी तो सभी लोगों को ऐसी कोई आशंका नहीं थी कि इससे मौतें भी हो सकती है सभी का ध्यान शहर में हो रही भगदड़ के ऊपर था और लोगों की सुरक्षा व्यवस्था यह सब करने के बाद यह फैसला लिया कि लेखक फिर से शहर के दौरे पर जाएंगे!

पुराने भोपाल के बाहरी हिस्से में काफी चहल-पहल हो रही थी लेकिन चार इमली शिवाजी नगर आदि ने यह चहल पहल कम थी क्योंकि वास्तव में इन क्षेत्रों के लोग शांति से सो रहे थे इतने में यह पता चला कि जयप्रकाश अस्पताल में बहुत अधिक भीड़ हो गई है यह भीड़ भोपाल के गैस पीड़ितों की थी इतने में डॉक्टर सक्सेना ने लेखक को आकर जानकारी दी कि गैस अधिक सूँघ लेने के कारण 3 लोगों की मृत्यु हो गई है यह पहली बार था जब दुर्घटना से मौत की कोई सूचना मिली थी इस सूचना से उन्हें बहुत कष्ट हुआ और थोड़ी ही देर बाद किसी व्यक्ति ने आकर बताया कि दो बच्चों की भी मृत्यु हुई है इस प्रकार मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही थी अब यह स्पष्ट हो चुका था कि यूनियन कार्बाइड से निकला हुआ है गैस जहरीली थी बड़े प्रयास किए जा रहे थे लोगों को बचाने के लिए लेकिन वाहनों की कमी थी मगर फिर भी कई अधिकारियों ने निजी वाहनों से सभी गैस पीड़ितों को अस्पताल पहुंचाया कर्मचारियों की कमी अपने आप में एक बड़ी समस्या बन चुकी थी क्योंकि बड़े पैमाने पर लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े हुए थे और अपने-अपने घरों से भाग रहे थे वाहनों का मिलना बहुत कठिन हो रहा था और अस्पताल का स्टाफ भी वहां से भाग रहे थे रात के 2:00 बज चुके थे सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया गया और सभी की अलग-अलग जगह पर लगाई जा रही थी घटना से संबंधित जानकारी थी उससे यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि मरने वालों की संख्या 50 तक पहुंच चुकी है यह सोचकर लोग मान रहे थे कि बहुत बहुत बड़ा हादसा हो गया है सुबह के 6:30 बजे तक भी घटना का असली रूप सामने नहीं आया था जैसे-जैसे सूर्य का प्रकाश फैला सभी बचाव दलों के सदस्य मकानों के अंदर घुसे तो भयावह दृश्य सामने आया गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्र में स्थित मकानों एवं झुग्गियों में जहां बचाव दल जाते थे वहां या लाशे मिलती थी या गंभीर रूप से बीमार लोग मिल रहे थे अन्य लोग भाग गए थे गंभीर रूप से घायल लोगों ने रात के समय ही अपना दम तोड़ दिया था घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया लाश को पोस्टमार्टम के लिए नगर निगम के वाहनों एवं अन्य वाहनों में मेडिकल कॉलेज भेजा गया हर तरफ सिर्फ दहशत का माहौल था सहायता की मांग बराबर आ रही थी कई टेलीफोन कॉल और कई संदेशों का अंबार लगता जा रहा था सभी डॉक्टर, नर्स बड़ी संख्या में चिकित्सा तथा सेवा कार्य में लगे थे पुलिस थाना में भी डॉक्टर लोग खड़े होकर मेज पर दवाइयां रखकर मरीजों की आंखों में दवा डाल रहे थे और खाने को गोलिया दे रहे थे यह स्पष्ट है कि तकलीफ और लक्षणों के आधार पर ही उपचार किया जा रहा था परंतु इसके साथ-साथ एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही थी शवों के अंतिम संस्कार कैसे इतने बड़े पैमाने पर अंतिम संस्कार किया जाए दुविधा उत्पन्न हो चुकी थी!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या अंतर है ?

  पहला अंतर 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे *ध्वजारोहण कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting ( ध्वजारोहण ) कहा जाता है। जबकि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है। दूसरा अंतर 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं। जबकि 26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं तीसरा अंतर स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जा...

भारत के वर्त्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हुए रिटायर

जरा ध्यान दीजिए (अब घर बैठ कर कितना कमाएंगे) रिटायरमेंट मासिक पेंशन - (4 लाख रुपये/ month) दो सचिव & Delhi police protection( 2 लाख) 2लैंडलाइन फोन & 1फोन और इंटरनेट 150000 rs, फ्री बिजली, पानी, 1करोड़ की कार, और ड्राइवर Life time रेल जहाज की यात्रा फ्री (यानी10 से 15लाख) करीब हर महीना फ्री । 30000रुपये उनकी Wife को । हर महीने करीब 3000000 (तीस लाख) का खर्च ARMY के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बोले ARMY की पेंशन योजना नही होनी चाहिए #इन्होंने_signature_सबसे_पहले_किए_जाते_जाते___ARMY_पेंशन_बंद_करने_के_लिए सिर्फ तीस हजार इनको ज्यादा लगे ARMY पेंशन के जो जवान पूरी जिंदगी बॉर्डर पे गुजारता है- कभी हिमालय में, कभी जंगलों में, कभी ग्लेशियर में, कभी पहाड़ो पर ( क्या पता शहीद होकर घर आए ) पूरी जिंदगी देश सेवा के लिए........ अपने घर परिवार, माँ-बाप, भाई-बहन, पत्नी और बच्चों के साथ साथ समाज और रिश्तेदार से दूर, दोस्तों और यारों से दूर, पर्व त्योहार, जश्न से दूर रहते हैं, माँ भारती की सेवा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए । We love you ADGPI - Indian Army Big Salute You वाह! राष्टपति ...